यदि देश की सुरक्षा ऐसी होती है... तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है !


देश की सुरक्षा का सवाल किसी भी देश के लिए सबसे अहम सवाल होता है। आम तौर पर देशवासियों के अन्दर देशभक्ति की भावना काफी प्रबल होती है। शोषक-शासक समूह जनता की इसी भावना का इस्तेमाल कर अपने निहित हितों की पूर्ति के लिए तरह-तरह का अन्यायपूर्ण युद्ध लड़ता रहता है। हमारे देश के साम्राज्यवादपरस्त शासक समूह पहले बाहरी दुश्मनों - कभी पाकिस्तान तो कभी चीन और फिर कभी दोनों से खतरे की अन्तहीन बात किया करते थे। लेकिन फिलहाल उन्होंने देश के अन्दर ही अपना दुश्मन चुन लिया है। वे आजकल अपनी न्यायसंगत व जायज मांगों के लिए संघर्षरत जनता के विभिन्न समूहों को ‘देश की एकता व अखण्डता’ के लिए खतरनाक घोषित करने पर तुले हुए हैं। वे कभी आत्मनिर्णय के अधिकार के लिए संघर्षरत विभिन्न उत्पीड़ित राष्ट्रीयताओं पर अपना निशाना साधते हैं तो कभी ‘देश की जनता की मुक्ति’ की लड़ाई लड़ने वाले माओवादियों पर। देश की जनता का जो समूह जितना ही जोरदार व जुझारू तरीके से संघर्ष करता है, शोषक-शासक वर्गों की राजसत्ता उन पर उतना ही तीखा हमला करती है। यह विचार पी.डी.एफ.आई. की अखिल भारतीय समन्वय कमेंटी की ओर से अर्जुन सिंह ने रखे।
आगे उन्होंने कहा कि चूंकि माओवादी शोषक और दमनकारी सत्ता व व्यवस्था के खिलाफ ‘सशस्त्र संघर्ष’ या ‘क्रान्तिकारी युद्ध’ संचालित कर रहे हैं और क्रान्ति के जरिए एक नई जनवादी सत्ता व व्यवस्था का निर्माण करना चाहते हैं, इसलिए केन्द्र सरकार ने उन्हें सबसे बड़ा ‘आन्तरिक दुश्मन’ घोषित कर दिया है। करीब दो साल पूर्व ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने ऐलान किया कि वामपंथी उग्रवाद व माओवादी ‘देश की आन्तरिक सुरक्षा के लिए ‘एकलौता सबसे बड़ा खतरा’ बन गये हैं।
इसके बाद माओवादियों और उनकी समर्थक जनता पर विशेष पुलिस व अर्द्ध सैनिक बलों के हमले शुरू हो गये। सबसे पहले छत्तीसगढ़ में ‘सलवा जुडूम’ के नाम पर क्रूर दमनकारी अभियान चलाये गये और फिर इस साल ‘ऑपरेशन लालगढ़’ और ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ शुरू हुआ। और अब तो केन्द्र सरकार ने सम्बन्धित राज्यों (छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा व झारखंड आदि) की सरकारों के साथ सीधा तालमेल कर संघर्षशील जनता पर एक किस्म का युद्ध ही थोप दिया है। खासकर उन आदिवासी बहुल इलाकों को प्रहार का निशाना बनाया गया है, जहां माओवादी आन्दोलन अपेक्षाकृत ज्यादा सघन है। वहां सघन सैन्य अभियान चलाने के लिए अब तक विभिन्न अर्द्ध सैनिक व विशेष सुरक्षा बलों के करीब एक लाख जवानों को लगा दिया गया है। इनके अलावा केन्द्र सरकार माओवादी आन्दोलन को चकनाचूर करने के लिए थल सेना व वायु सेना के भी इस्तेमाल का मन बना रही है। वैसे तो सेना के विभिन्न विभाग इस विशेष दमन अभियान की योजना बनाने व संचालित करने और इसके लिए सुरक्षा बलों को विशेष रूप से प्रशिक्षित करने में पहले से ही लगे हुए हैं। वायु सेना के हेलीकाप्टर भी लगातार ‘लाजिस्टिक्स सपोर्ट’ (सुरक्षा बलों को लाने-ले जाने का काम आदि) दे रहे हैं। अब तो सरकार ने इन हेलीकॉप्टरों पर तैनात सैनिकों को ‘आत्मसुरक्षा’ में फायरिंग करने की इजाजत भी दे दी है। ऊपर से अमेरिकी सैटेलाइट एवं सैन्य व खुफिया विभाग की मदद तो इन्हें मिल ही रही है। कुल मिलाकर केन्द्र सरकार द्वारा भारतीय जनता के लड़ाकू हिस्से पर छेड़ा गया युद्ध ‘आतंकवाद’ के खिलाफ अमेरिकी युद्ध’ का एक हिस्सा बनने जा रहा है। जिस तरह अमेरिका ने इराक व अफगानिस्तान के प्राकृतिक संसाधनों पर अपना और अपनी पराराष्ट्रीय/बहुराष्ट्रीय कम्पनियों का कब्जा जमाने के लिए हमला किया, उसी प्रकार भारत सरकार ने आदिवासी बहुल क्षेत्रों में स्थित बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा जमाने के लिए इस युद्ध को छेड़ा है। अर्जुन सिंह ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के संसद में दिये गये बयान कि, ‘यदि खनिज के प्राकृतिक सम्पदा वाले हिस्से में वामपंथी अतिवाद फूलता-फलता रहा तो निवेश का वातावरण प्रभावित होगा’, पर चर्चा करते हुए कहा कि इस बयान से आदिवासी क्षेत्रों में चलाये जा रहे सैनिक अभियान का असली मकसद स्पष्ट हो जाता है।
उनका मानना है कि इस युद्ध के पीछे केन्द्र सरकार का वास्तविक लक्ष्य उन इलाकों में स्थित जल, जंगल व जमीन के अन्दर छुपे बेशकीमती खनिजों पर कब्जा करना है और उन्हें देशी-विदेशी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के सुपूर्द करना है। साथ ही साथ, उसे अमेरिकी साम्राज्यवादियों के वैश्विक हितों को फायदा भी पहुंचाना है। अमेरिकी नौसेना एकेडमी के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने साफ शब्दों में कहा है कि ‘नक्सलवाद दक्षिण एशिया में अमेरिकी हितों के लिए एक चुनौती है।’ और भारत सरकार ने इसी चुनौती को खत्म करने के लिए जनता पर खुले युद्ध का ऐलान कर दिया है। आज कश्मीर और मणिपुर में फर्जी मुठभेड़ एवं हत्या का दौर जारी है, दिल्ली व गुड़गांव के मजदूरों पर हमले हो रहे है, पंजाब व उत्तर प्रदेश के किसानों पर गोलियां व लाठियां बरसाई जा रही हैं; ‘वनवासी चेतना आश्रम’ जैसे गांधीवादी कुटीर को तोड़ा जा रहा है और ‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ के कार्यालय में ताले जड़े जा रहे हैं व उनके नेताओं को गिरतार किया जा रहा है। अर्जुन सिंह ने कहा कि इस स्थिति में शासक वर्ग की भूमिका के संदर्भ में लिखी गोरख पाण्डेय की कविता की ये पंक्तियां काफी प्रासंगिक हैं - ‘कानून अपना रास्ता पकड़ेगा; देश के नाम पर जनता को गिरतार करेगा, जनता के नाम पर बेच देगा देश और सुरक्षा के नाम पर असुरक्षित करेगा।’ और पाश के शब्दों में ‘यदि देश की सुरक्षा ऐसी होती है.... तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है।’
उन्होंने कहा कि अगर देश के जल-जंगल-जमीन और खनिज पदार्थों व अन्य प्राकृतिक संसाधनों पर जनता के स्वामित्व को स्थापित करना है और सचमुच देश को असली दुश्मनों से सुरक्षित रखना है तो तमाम प्रगतिशील, देशभक्त, जनतांत्रिक व क्रान्तिकारी ताकतों का दायित्व बनता है कि वे सर्वप्रथम मोर्चाबद्ध हों और शोषण व दमन पर टिकी इस सत्ता व व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव लाने और इसकी जगह सही मायने में एक लोक जनवादी सत्ता व व्यवस्था बनाने की लड़ाई को तेज करें। इसी लड़ाई की एक कड़ी के रूप में प्रगतिशील, देशभक्त, जनतांत्रिक व क्रान्तिकारी ताकतों का साझा मंच ‘भारत का लोक जनवादी मोर्चा’ की ओर से निम्नांकित मांगो का ज्ञापन सरकार को सौंपा गया -
- सभी प्रकार के क्रान्तिकारी-जनवादी व राष्ट्रीयता आन्दोलनों पर राजकीय दमन बन्द किया जाये;
- जनता के किसी हिस्से के आन्दोलन के खिलाफ सेना के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी जाये;
- ‘देश की सुरक्षा’ या ‘माओवादियों से ‘इलाके को मुक्त कराने’ के नाम पर आदिवासी इलाकों में चलाये जा रहे तमाम सैन्य अभियानों को तत्काल बन्द किया जाये और उन इलाकों से तमाम सुरक्षा बलों को वापस किया जाये;
- गैर कानूनी गतिविधियां निवारक कानून रद्द किया जाये और इस कानून व अन्य कानूनों के तहत गिरतार सभी राजनीतिक बन्दियों को रिहा किया जाये;
- माओवादियों या अन्य आन्दोलनकारियों द्वारा उठाये गये मुद्दों को बातचीत के जरिये हल किया जाये।
उनका कहना है कि पी.डी.एफ.आई. अपनी मांगो को लेकर दृढ़ रहेगा। जरूरत पड़ने पर राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक आन्दोलन करने की बात भी कही गयी।


--Chandan Jha



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