कहीं पर लूट भी होगी कहीं पर कत्ल भी होंगे


आज हमारे मुल्क में जो हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। चारों तरफ भ्रष्टाचार व आतंक का माहौल बना हुआ है। कानून व्यवस्था पूर्ण रूप से चरमरा गई है। असुरक्षा का माहौल चारों तरफ बना हुआ है। गरीबी व लाचारी में लोग जीवन-यापन करने को विवश हैं, यह एक प्रगतिशील देश की प्रतिष्ठा पर आघात है। सारी सरकारी मशीनरी चौपट सी नजर आती है, कोई भी अपने कार्य को सही दिशा नहीं दे पा रहा है। प्रशासन अपने आपको बेबस और लाचार महसूस करने पर मजबूर है, परंतु इसकी जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं है, क्योंकि आज हर कोई अपने आपको पाक-साफ दिखाने की कोशिश में निरन्तर गुनाह किये जा रहा है। अपितु आज किसी भी क्षेत्र में हालात बिगड़े हैं, तो उसके लिऐ हम स्वयं जिम्मेदार है, सुधारवाद की आवाज तो हर कोने-कोने से आती है, मगर हम अपने अन्दर के शैतान को नहीं मारते। हम बड़ी आसानी से अपना दोष दूसरे पर मढ़ देते हैं या फिर सरकार को इसका जिम्मेवार ठहराते हैं। सन् 1947 से आज तक हम एक स्वरूप भारत की कामना तो करते है। परंतु हम आज के हालात पर अगर नजर डालें तो देश की अर्थव्यवस्था, कानून- व्यवस्था तथा न्याय-व्यवस्था अपराध के समुन्दर में डूबी नजर आती है।
जहां तक आतंकवाद का सवाल है, कोई भी शख्स आतंकवादी नहीं बनना चाहता अपितु सामाजिक प्रताड़ना और सामाजिक अव्यवस्था से परेशान होकर वह इस आतंकवाद के रास्ते पर निकलता है। सरकारी मशीनरी आज कितनी काबिल है, वह हम अदालतों में, दफ्तरों आदि में देखते हैं। हर महकमा लापरवाह और आलसी हो चुका है। यदि हर कर्मचारी महीने में मात्र 10 दिन भी ईमानदारी से काम करने लगे तो हिन्दुस्तान को फिर सोने की चिड़िया बनते देर नहीं लगेगी। अतः मैं यही कहूंगा की मुझे खुद ईमानदार बनना होगा।
बुराई का बुंलद स्वर :
लगा दो और भी पहरे
ये ऐलान-ए-कातिल का दावा है
कहीं पर लूट भी होगी
कहीं पर कत्ल भी होंगे।

- Dinesh Kumar


1 comments:

Dr. Purushottam Meena 'Nirankush'-Editor-PRESSPALIKA said...

श्री दिनेश जी शानदार लेखाभिव्यक्ति के लिये साधुवाद और शुभकामनाएँ। आशा करता हँू कि आगे-आगे और भी कडवा सच पढने को मिलेगा। आपकी बात से असहमत होने का कोई कारण नहीं है।

हम भी इसी दिशा में काम कर रहे हैं और आपके जैसे ही विचारों को हम भी सम्मान देते हैं। मेरा मानना है कि "दूसरों में जो परिवर्तन देखना चाहते हैं, उनकी शुरूआत हमें स्वयं से करनी चाहिये" और "हम जिन-जिन भी सुधारों की बात करते हैं, उन सभी बातों को अपने आचरण से प्रमाणित करना चाहिये।"

शुभकामनाओं सहित-आपका-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा निरंकुश, सम्पादक-प्रेसपालिका (पाक्षिक समाचार-पत्र) एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (बास) फोन : ०१४१-२२२२२२५ (सायं : ७ से ८)-१४.०५.२०१०

Post a Comment