‘‘एड्स का प्रभावी प्रबंध-सम्बंध जीवनसाथी के संग’’
ये पंक्तियां एक सरकारी विज्ञापन में देखकर मेरे अन्तर्मन में सहसा ये विचार आया कि एड्स नामक महामारी मनुष्य स्वच्छंदता एवं चरित्रहीनता पर लगाम लगाने का एक जरिया है। हमारे पुराणों के अनुसार सृष्टि की रचना के साथ ही भगवान ने अर्थात अदृश्य शक्ति ने मनुष्य की रचना की तथा उसे अपनी सर्वश्रेष्ठ कृति बनायी। मनुष्यों में स्त्री तथा पुरूष को एक दूसरे का पूरक बनाया, जिनके बीच मानसिक एवं शारीरिक सम्बंधों की नींव रखी, ताकि वे आपसी सम्बंधों द्वारा अपने वंश का संचालन कर सके। इस सबके साथ ही साथ प्रदान की सोचने की शक्ति। अपनी इसी शक्ति का प्रयोग करके मानव ने आग से लेकर हवाई जहाज तक के अविष्कार किये, परन्तु इसी सोच का नकारात्मक पहलू उसकी इच्छाओं का भण्डार तथा विघ्वंशक सोच थी। इन्हीं इच्छाओं में छिपी थी वासना की भावना, जिसने प्रारंभ में मनुष्य को अपना वंश बढ़ाने का माध्यम दिया परन्तु कालान्तर में जब जनसंख्या चरम पर आने लगी, परन्तु वासना की भावना भी उत्कर्ष पर थी, तब प्रारंभ हुआ वेश्यावृत्ति एवं अवैध सम्बन्धों का दौर। मनुष्य के चरित्र-पतन की इस सीढ़ी ने कई सोपान तय किये और जब ये चारित्रिक-पतन अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचा तब एड्स का प्रवेश हुआ एक महामारी के रूप में। एक महामारी, जो दबे पांव आई और ना जाने कितनों को आगोश में ले लिया।
एड्स के तमाम जगरूकता अभियानों के बावजूद ना एड्स के मामले नियंत्रित हो पा रहे हैं ना ही इसके प्रति सामाजिक सोच में कोई परिवर्तन लाने में सफलता मिल सकी है।
भारत सरकार के राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संस्थान (नाको) के एक सर्वेक्षण के अनुसार आज तक भी समाज का एक बड़ा वर्ग एच.आई.वी. पोजीटिव लोगों को हेय दृष्टि से देखता है। इनमें भी पुरूषों की तुलना में महिलाओं को ज्यादा अपमान और कंलक के साथ जीना पड़ता है। समाज के इस रवैये का कारण लोगों में एड्स को लेकर जागरुकता का अभाव है।
अगर वैज्ञानिक दृष्टि से देंखे तो एड्स एक विषाणु जनित रोग है, इसका विषाणु ‘मानव प्रतिरक्षा अपूर्णता विषाणु’ (Human Immunodeficiency virus) है। इसका सबसे पहला मामला 1981 में कैलिफोर्निया में प्रकाश में आया था, तथा भारत में पहला मामला 1986 में चेन्नई में प्रकाश में आया था। बस अपने दो-ढाई दशकों के इतिहास में इसने पूरी दुनिया को हिला दिया। इसका विषाणु हमारे प्रतिरक्षा तंत्र को नष्ट करके रोग प्रतिरोधक क्षमता घटा देता है, जिससे रोगी क्षयरोग, कैंसर आदि बिमारियों का शिकार हो जाता है और धीरे-धीरे मौत के आगोश में चला जाता है और इसका दुखद पहलू ये है कि भगवान का रुप माना जाने वाला चिकित्सक भी असहाय सा रोगी की इस घुटन भरी खत्म होती जिन्दगी को देखता रह जाता है। ऐसा माना जाता है कि सबसे पहले ये बिमारी कुछ समलैंगिकों में देखी गयी और समलैंगिकता प्रकृति के विरुद्ध उठाया गया कदम है। परन्तु बड़े अफसोस की बात है कि प्रकृति की इस चेतावनी को भी हम मनुष्यों ने नजरअंदाज कर दिया और इसका परिणाम कई बेकसूरों को भुगतना पड़ा जो अनजाने ही, बिना किसी गलती के इसका शिकार होते चले गये। प्रकृति की इस चेतावनी को हमें सुनना ही होगा।
आंकड़े यह बात स्पष्ट करते हैं कि समलैंगिक संबंधो के कारण 5 से 10 प्रतिशत एड्स के मामले सामने आये हैं। स्वास्थ्य संबधी असुरक्षा के कारण 5 से 10 प्रतिशत जबकि लगभग 11 प्रतिशत मामले संक्रमित माता या पिता से उनकी संतानों को तथा शेष दो तिहाई के लगभग संक्रमण असुरक्षित यौन सम्बंधों के कारण से फैलता है।
UNAIDS के सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 31.3 मिलियन वयस्क और 2.1 मिलियन बच्चे 2008 के अन्त तक एड्स से पीड़ित थे। अकेले सन् 2008 में ही एड्स के 2.7 मिलियन नये मामले प्रकाश में आये। सन् 2008 में ही लगभग 2 मिलियन लोगों की मृत्यु एड्स के कारण हुई। एड्स से ग्रस्त लोगों में ज्यादातर लोग 20 से 25 साल की उम्र के हैं। "Global patterns of mortality in young people- a systematic analysis of population health" के अनुसार 20 से 25 वर्ष की उम्र में होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण एड्स ही होता है। 2007 के अन्त तक 18 वर्ष से कम उम्र के लगभग 15 मिलियन बच्चे एड्स के कारण अनाथ हो चुके थे। सन् 2008 तक 14 वर्ष या उससे कम उम्र के लगभग 4 करोंड़ बच्चे एड्स से ग्रस्त हो चुके थे।
हालांकि सरकार विभिन्न संचार के माध्यमों के इस्तेमाल करके लोगों को एच आई वी एड्स के बारे में सही जानकारी दे रही है। बावजूद भी ज्यादातर लोग इसे छुआछूत की बीमारी मानते हैं। एड्स फैलने की मुख्य वजह है असुरक्षित यौन सम्बंध। एच आई वी के ज्यादातर मामले असुरक्षित यौन संबधो के कारण ही होते हैं। सुरक्षा की दृष्टि से यौन संबंध के समय पुरूषों को कॉण्डोम का इस्तेमाल करना चाहिए। इसी मुद्दे पर समाज की नैतिकता आड़े आ जाती है। लोग इस पर बात करना बंद कर देते है। इससे उन्हें लगता है कि समाज में अश्लीलता पैदा होती है। इसलिए जब भी स्कूलों में सेक्स एजुकेशन देने की बात उठती है, हंगामा खड़ा हो जाता है । यही वजह है कि एड्स का शिकार बनने वालों में किशोरों की संख्या बहुत ज्यादा है।
नाको ( NACO) की रिपोर्ट के मुताबिक एड्स के मामले में करीब एक तिहाई 15 से 19 साल के किशोर हैं। यह बात बेहद खतरनाक हैं। लगभग यही हाल महिलाओं का भी है, कम उम्र में शादी, अज्ञानता और समाजिक गैर बराबरी के चलते महिलाओं एवं लड़कियों में एच आई वी के संक्रमण का जोखिम ज्यादा होता है। हालात यह है कि हर 5 में से एक महिला एच आई वी के रोग से पीड़ित है। इसकी वजह केवल असुरक्षित यौन संबंध ही नहीं है, बल्कि संक्रमित खून या अन्य स्वास्थ्य संबंधी लापरवाहियों से भी एच आई वी एड्स के फैलने की संभावना रहती है। अगर हम थोड़ी सी सावधानी बरतें तो इस भयानक बीमारी से बच सकते हैं । यह सभी देशों के लिए एक बड़ा खतरा बनता जा रहा है। इसके बचाव का एक ही तरीका है सही और सटीक जानकारी व उचित सावधानियां बरतनी चाहिए । एच आई वी एड्स के खिलाफ जोरदार मुहिम के साथ - साथ लोगों में भी इसके प्रति जागरूकता उत्पन्न करनी होगी। संयम और सदाचरण ही वो अस्त्र है जिसके समक्ष एड्स रुपी दानव बेबस और असहाय हो जाता है। एक कवि ने सत्य ही लिखा है -
आज का दौर,
एड्स का दौर है,
एक ही शोर है
एड्स से बचने के लिये
यह करो वह करो
पर कोई नहीं कहता
चरित्र ऊंचा करो।
- Shahnaz Ansari
NIRMAN SAMVAD
(तस्वीर गूगल सर्च से साभार)
एड्स -- दूर होती जिन्दगी..
By AMIT TIWARI 'Sangharsh'
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