खोजना होगा आतंकवाद का बुनियादी कारण


आज हमारे देश मे जो आतंकवाद बढ़ रहा है उसका मुख्य कारण क्या है, हमें इन बारीकियों पर नजर दौड़ानी होगी।
हमारे देश में आज मानव अधिकारों का पूर्ण रूप से हनन हो रहा है। महंगाई इतनी बढ़ गई है कि रोजमर्रा की चीजें भी आम आदमी की पहुंच से बाहर हो गयी हैं। सरकारी नौकरी करने वाले कर्मचारी तो फिर भी अपना गुजारा कर लेते हैं, मगर प्राइवेट नौकरी करने वालों के लिए मंहगाई एक चुनौती है। शासन व प्रशासन पूरी तरह भ्रष्ट हो गया है।
कहीं कोई मार्ग नहीं। अब आम नागरिक क्या करे? जिये या मरे? इसी कारण वह अपने मार्ग से भटक रहा है।
मुंबई पर हुए हमले की निंदा चाहे पूरे विश्व भर में हुई हो मगर यह काफी नहीं है। भारत बेशक पकिस्तान के खिलाफ सबूत पेश कर रहा है। मगर इसका मतलब यह कतई नहीं होना चाहिए कि हम हाथ पर हाथ रख कर बैठ जाएं। यह मुंबई पर हमला नहीं यह देश की अस्मिता पर हमला है। हम कब तक अमरीका या दूसरे देशों को यह दिखाते रहेंगे कि देखिए हम पर हमला हुआ है, आप कुछ कीजिए। नहीं बल्कि हमें इजराईल की नीतियां अपनानी होगीं। विश्व विख्यात इजराइल अपने देश के हित में फैसला खुद करता है। पहले दुश्मन को सबक सिखाता है बाद में सुनता है।
आज भारत की उन्नति को देखकर पाकिस्तान ही नहीं बल्कि बड़े और विकसित देश भी ईर्ष्‍या करते है। हमारे राजनेताओं को चाहिए वह यह कह कर कि ‘हम कार्यवाही करेंगे’, समय खराब न करें बल्कि पाकिस्तान जैसे धृतराष्‍ट्र को सबक सिखाना चाहिए।
हमें याद करना चाहिए की पृथ्वीराज चैहान ने गौरी को अनेकों बार हराने के बाद भी जीवित छोड़ा उसका परिणाम कितना भयंकर हुआ, वह इतिहास में दर्ज है। यही गलती हिन्दुस्तान आज भी कर रहा है। हमें अपने देश की सुरक्षा खुद करनी है न कि हमें अमेरिका के भरोसे रहना है। अगर आज हमने ईंट का जवाब पत्थर से न दिया तो पाकिस्तान के हौसले में इजाफा होगा और फिर कई बड़ी घटनाएं होगी, आम नागरिक फिर शहीद होंगे। फिर बयानबाजियां होंगी। सबसे बड़ी जिम्मेदारी हमारे स्वयं की बनती है। मगर लगता है कि हमारे नेता आज नपुसंक हो गये है।
मुझे शास्त्री जी की याद आती है, जिन्होंने कहा था हम ईंट का जवाब पत्थर से देंगे और उन्होंने कर भी दिखाया था। हमें याद करना चाहिए श्रीमति इंदिरा गांधी जी को जिन्होंने पाकिस्तान को हारने पर मजबूर कर दिया था। करीब नब्बे हजार फौजी हथियार सहित गिरफ्तार किये गये थे। पूरी दुनियां ने देखा था कि यह वही भारत है जिसे हम सपेरो का देश कहते हैं। ऐसे जंगजू जिन्होंने एक इतिहास रचा। इससे पहले किसी देश ने दूसरे देश की इतनी बड़ी तादात में फौज का सरेन्डर नहीं कराया था। इस जंग में पाकिस्तान पूरी तरह टूट गया। आज उसी जज्बे की आवश्यकता है। कहीं ऐसा न हो पृथ्वीराज चैहान वाला किस्सा आज की पीढ़ी को फिर से देखना पड़े।


- Ishwar Singh

NIRMAN SAMVAD

कहीं पर लूट भी होगी कहीं पर कत्ल भी होंगे


आज हमारे मुल्क में जो हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। चारों तरफ भ्रष्टाचार व आतंक का माहौल बना हुआ है। कानून व्यवस्था पूर्ण रूप से चरमरा गई है। असुरक्षा का माहौल चारों तरफ बना हुआ है। गरीबी व लाचारी में लोग जीवन-यापन करने को विवश हैं, यह एक प्रगतिशील देश की प्रतिष्ठा पर आघात है। सारी सरकारी मशीनरी चौपट सी नजर आती है, कोई भी अपने कार्य को सही दिशा नहीं दे पा रहा है। प्रशासन अपने आपको बेबस और लाचार महसूस करने पर मजबूर है, परंतु इसकी जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं है, क्योंकि आज हर कोई अपने आपको पाक-साफ दिखाने की कोशिश में निरन्तर गुनाह किये जा रहा है। अपितु आज किसी भी क्षेत्र में हालात बिगड़े हैं, तो उसके लिऐ हम स्वयं जिम्मेदार है, सुधारवाद की आवाज तो हर कोने-कोने से आती है, मगर हम अपने अन्दर के शैतान को नहीं मारते। हम बड़ी आसानी से अपना दोष दूसरे पर मढ़ देते हैं या फिर सरकार को इसका जिम्मेवार ठहराते हैं। सन् 1947 से आज तक हम एक स्वरूप भारत की कामना तो करते है। परंतु हम आज के हालात पर अगर नजर डालें तो देश की अर्थव्यवस्था, कानून- व्यवस्था तथा न्याय-व्यवस्था अपराध के समुन्दर में डूबी नजर आती है।
जहां तक आतंकवाद का सवाल है, कोई भी शख्स आतंकवादी नहीं बनना चाहता अपितु सामाजिक प्रताड़ना और सामाजिक अव्यवस्था से परेशान होकर वह इस आतंकवाद के रास्ते पर निकलता है। सरकारी मशीनरी आज कितनी काबिल है, वह हम अदालतों में, दफ्तरों आदि में देखते हैं। हर महकमा लापरवाह और आलसी हो चुका है। यदि हर कर्मचारी महीने में मात्र 10 दिन भी ईमानदारी से काम करने लगे तो हिन्दुस्तान को फिर सोने की चिड़िया बनते देर नहीं लगेगी। अतः मैं यही कहूंगा की मुझे खुद ईमानदार बनना होगा।
बुराई का बुंलद स्वर :
लगा दो और भी पहरे
ये ऐलान-ए-कातिल का दावा है
कहीं पर लूट भी होगी
कहीं पर कत्ल भी होंगे।

- Dinesh Kumar


जलमेवममृतम्, इदम जलमौषधम्


‘‘जलमेवममृतम्, इदम जलमौषधम्।।’’ कहकर जल की महत्ता और उसकी उपादेयता को श्रेष्‍ ठता प्रदान करने वाला देश, सभी प्रकार के जलस्त्रोतों, जल-संग्रह स्थलों तथा जलों को पूज्य मानने वाले देश में, जल के देवता श्री वरूण देव की प्रसन्नता हेतु सदैव जलस्थलों, जल के आसपास के क्षेत्र तथा जलों को पवित्र, स्वच्छ, सुन्दर रखने का अभ्यासी जन समुदाय वास करता रहा है। राज्य और प्रजाजन सभी जलों का समादर करते रहे हैं। इस हेतु के राजकीय, सामाजिक, सामुदायिक, साम्प्रदायिक, धार्मिक और व्यक्तिगत आचरण तथा आचार संहिता भी प्रयोज्य थी।
किन्तु आज राज्य से लेकर व्यक्ति और व्यावसायिक समूहों तक सभी उसी अमृतमय जल को, उसी औषधिमय जल को विषमय करने के उपादानों में दिनरात लगे हैं। शहरों के मलमूत्र से लेकर कारखानों के रासायनिक विषैले पानी के नाले और चमड़े के पानी के नाले पवित्र जलों को बरबाद कर चुके हैं।
आज जब संपूर्ण विश्‍व और स्वयं भारत तथा इसके समस्त महानगर जल संकट के मुहाने पर खड़े हैं, उस समय भी दृष्टिहीन मानवजाति कितनी भयावह गति से जलों के विनाश पर डटी हुई है। आने वाले समय में निश्चित ही यह स्थिति इससे भी विकट होगी। आज गंदे नालों का पानी अपेक्षाकृत साफ और महानगरीय प्राकृतिक नदियों का पानी अधिक गंदा दिखता है। जिनका चुल्लू भर जल पीकर मानव प्राण तृप्त कर लेता था, उन सरिताओं के चुल्लू भर जल को जनगण आज तरसता है।
यह सभ्यता, यह विकास अपनी ही समूल हानि का प्रयास है, जो एक दिन अवश्‍य ही हमारे अपने लिए ही चुक जाने का कारण बनने वाला है। यह प्रदुषण जल, वायु, अग्नि, आकाश, पर्यावरण सर्वत्र ही तो फैला हुआ है। आखिर क्या होगी इसकी अन्तिम परिणति ?
ऐसा नहीं कि नदियों, जलों के संरक्षण की योजनाएं नहीं चल रही हैं। अब तक केवल भारतवर्ष में ही सैकड़ों अरब रुपये इस हेतु व्यय हो चुके हैं। किन्तु विचारणीय यह है कि इस दिशा में हमारी उपलब्धि क्या है ? क्या इतने व्यय के बाद भी हम देश की एक भी नदी को पवित्रता या शुद्धता के स्तर तक वापस ले जा सके हैं ? नहीं!!
प्रश्‍न यही है कि आखिर ये नाले, नदियों में ही क्यों गिराए जाते हैं ? इनके लिए कोई अन्य विसर्जन स्थल क्यों नहीं तैयार किया जा रहा है ? नदियों को पूर्ण प्राकृतिक अवस्था में ही क्यों नहीं बहने दिया जा रहा है।


- Dr. Kamlesh Pandey



समीपस्थ विनाश को रोक पाने का सामर्थ्‍य भारत-दर्शन में ही


साम्राज्यवाद के प्रतिकार का स्वरूप आधुनिक विकास के रूप में उभरने आया तो सम्भावनाओं का नया सूर्य उदित होता सा लगा था। किन्तु जब वह अपने युवावय के मोड़ पर पहुंचा तो क्लास, क्लासीफिकेशन और स्टेटस सिम्बल जैसी नई साम्राज्यवादी सामाजिक संज्ञाओं के रूप में सीमांकन ही नहीं कर रहा, अपितु साम्राज्यवाद के क्रूरतम हृदयहीन मापदण्डों से भी आगे जाता हुआ दिख रहा है।
कोपेनहेगन या अन्य किसी भी प्रकार के जीवन संभावनाओं की तलाश के प्रयासों की सार्थकता की बात करने से पूर्व ही प्रश्न उठता है कि इसके लिए किस प्रकार की विचारधारा और जीवन-दर्शन को आधार बनाया गया है ? क्या समाज के सभी वर्गों और समाज के समस्त जीवन पहलुओं की वास्तविक मीमांसा के मंच पर नई संभावनाओं की खोज की जा रही है, अथवा किसी विशेष सीमा-रेखा के दायरे में ही कुछ लोग तथाकथित बुद्धिजीविता का प्रदर्शन करते हुए नवयुग के लिए कुछ नई सीमाएं तय करने वाले हैं ?
जीवन और जीवन-दर्शन की गंभीरता तथा गहनता को जाने बिना किसी भी प्रकार से विश्व को बचाने की अवधारणा पर काम करने का प्रयास अंततः एक असफल आयोजन ही सिद्ध होता है। इस दृष्टि से, निश्चय ही भारतीय चिंतन की ज्ञानधारा जीवन के लिए सदैव से सहजीवन, सह-अस्तित्व और परिणाम में शुभकारी विचारधाराओं एवं जीवन पद्धति की पोषक रही है।
ऐसे अनेकों प्रकार के जीवन-दर्शन भारतीय वाड्.मय में उपलब्ध हैं जिन्हें जीवन में अपनाकर विश्व के समस्त भूभागों में मनुष्य जीवन, अन्य जीवों का जीवन, प्रकृति, पर्यावरण, जल, वायु, अन्तरिक्ष, पृथ्वी, वन तथा जीवन संभावनाओं और जीवन के संसाधनों को न केवल अधिकतम समय तक विश्व में बनाए रखा जा सकता है, अपितु पूर्व में किए गए मनुष्यकृत प्रकृति के नुकसान की भी ठीक-ठीक भरपाई की जा सकती है।
भारतीय जीवन-दर्शन इस संपूर्ण प्रकृति, धरा तथा अन्य जीवों को स्वयं अपना ही अंश मानकर उसे जीने के प्रयासों की पोषकता के सिद्धान्त देते रहे हैं। इनकी अवहेलना करती हुई मनुष्य जाति अपने, प्रकृति के, अन्य जीवों के तथा धरा के समग्र विनाश का कारण बनने की कगार पर आ खड़ी हुई है।
अभी समय है, किन्तु यह अन्तिम क्षण हैं, जहां से यदि वापस लौट लिया जाए और भारतीय जीवन पद्धति को विश्व के लिए अधिकृत जीवन पद्धति घोषित करके उसे शत प्रतिशत लागू किया जा सके, तो निश्चय ही धरा, धरातल, अन्तरिक्ष, वायु, जल, प्रकृति, मनुष्य-जाति, अन्य जीव, वनादिकों को बचाया जा सकता है; अन्यथा समीपस्थ विनाश को रोक पाने का सामथ्र्य किसी में नहीं।

- Dr. Kamlesh Pandey


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कितनी कारगर है उत्तराखण्ड की महिला बाल विकास योजना


उत्तराखण्ड में महिला सशक्तिकरण और बाल विकास योजना के तहत राज्य सरकार ने नंदादेवी कन्या योजना के तहत चालू वित्त वर्ष में करीब 16 करोड़ रुपए आवंटित किए। आँकड़े के अनुसार महिला सशक्तिकरण के नाम पर 4 हजार करोड़ रूपये खर्च किए गए। मुख्यमंत्री आर पी निशंक के द्वारा राज्य सभा में लैंगिक मामलों से संबंधित एक बजट प्रस्तुत किया गया, जिसमें बजट को 2007-08 में 333 करोड़ रु. से बढ़ाकर 1 हजार 205 करोड़ रुपये कर दिया गया। पिछले वर्ष लिंग बजट के 20 विभाग थे, परंतु इस वर्ष चार और विभाग को इसमें शामिल किया गया, जिसमें महिलाओं की सुख समृद्धि और कल्याण को प्रमुखता दी जाएगी। महिलाओं के कल्याण से सम्बंधित गौरा देवी कन्याधान योजना, नंदा देवी योजना और इस प्रकार की अन्य योजनाओं की शुरूआत की गई। इस योजना को दो वर्गो में विभाजित किया गया। पहला महिलाओं के लिए और दूसरे वर्ग में 30 प्रतिशत लाभ महिला आबादी के लिए रखा गया है। नंदादेवी कन्या योजना, बालिकाओं को आर्थिक एवं शिक्षित सुरक्षा प्रदान करने के लिए की गई। इसके अन्तर्गत लैंगिक असमानता को दूर करने कन्या भ्रूण हत्या को रोकने, बाल विवाह को रोकने, कन्या शिशु को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करना है। इस योजना के तहत गरीबी रेखा से नीचे जीवन-यापन करने वाले परिवारों में जन्मी लड़कियों के नाम 5 हजार रुपये का एक फिक्स डिपाजिट चैक दिया जाता है। अगर लड़की 18 साल की हो जाती है तो यह रााशि उसके द्वारा प्राप्त की जा सकेगी। यदि 18 साल से पहले किसी कारण से कन्या की मृत्यु हो जाती है तो यह राशि वापस सरकार के खजाने में जमा करा ली जाएगी।
नंदादेवी योजना का मुख्य उदेश्य राज्य में लिंग अनुपात में आई कमी को ठीक करना है। अधिकारिक सूत्रों के अनुसार लिंग अनुपात की दृष्टि से उत्तराखण्ड में एक हजार पुरुषों पर वर्तमान में 962 महिलाएं है। इस योजना का उद्देश्य परिवार व समाज में बालिकाओं की स्थिति को समानता पर लाना, बाल विवाह पर रोक लगाना, कन्या की गंभीर बीमारी का इलाज कराना, संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देना, जन्म पंजीकरण को बढ़ावा देना, टीकाकरण के प्रति जागरुकता पैदा करना और गर्भवती माहिलाओं का सौ फीसदी पंजीकरण कराना शामिल है।
महिला सशक्तिकरण के ऊपर 48.73 करोड़ रूपये खर्च किए गए। सरकार महिलाओं के विकास के लिए विशेष ध्यान दे रही है। इसके अलावा राज्य में बच्चों के विकास के लिए देव भूमि मुस्कान योजना, मोनाल परियोजनाएं भी चला रही है, इतनी कल्याणकारी योजनाएं होने के बावजूद भी दूरदराज पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाली गरीब महिलाओं को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है।


- Sudarshan Rawat


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पुरोहिती पाखंड को जड़-मूल से निकाल फेंको


देश में चीखते सवालों का अम्बार लगा है। देश की एकता-अखंडता खंडित हो रही है। देशभक्ति का मतलब पाकिस्तान और साम्राज्यवादी शक्तियों को गाली देना भर रह गया है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि युवा किसी राष्ट्र की शक्ति होते हैं। किसी भी राष्ट्र की शक्ति का आंकलन वहां की युवा शक्ति से किया जा सकता है। लेकिन प्रश्न ये है कि आखिर युवा की परिभाषा क्या है? युवा कोई कायिक अभिव्यक्ति नहीं है, युवा किसी उम्रवय का नाम नहीं है, युवा एक गुणवाचक संज्ञा है। युवा वही है जिसके अन्दर युयुत्सा है, जिजीविषा है सवालों के जवाब तलाशने की। जिसके अन्दर जोश है देश के चीखते सवालों से लड़ने का। हहराती नदी के जैसा कैशोर्य ही नहीं होगा, तब फिर वह युवा कैसा? उद्दंडता ही नहीं, तब फिर यौवन कैसा? युवा का तो अर्थ ही उस हिलोर मारती नदी के जैसा है जो पहाड़ों की छाती को चीरकर आगे बढ़ जाती है। ईंट के घेरे में बंधकर बहने वाली नाली से किसी पहाड़ का सीना चीरने की उम्मीद कैसे की जा सकती है?
स्वामी विवेकानंद ने ऐसे थके हुए और लाचार युवाओं को ‘वयस्क बालक’ कहकर संबोधित किया था। यदि युवा का अर्थ सिर्फ उम्र से ही है तब फिर चालीस करोड़ युवाओं का देश भारत आज तक भी वैश्विक परिदृश्य में अपनी छाप छोड़ने में क्यों नहीं सफल हो सका है?
कारण स्पष्ट है, यहाँ का युवा निस्तेज हो गया है।
यद्यपि युवाओं ने कई बार अपनी शक्ति का परिचय दिया है। आजादी के समय जब विवेकानंद आदर्श थे, तब भगत सिंह, राजगुरु जैसे युवाओं ने इतिहास लिखा। जब सुभाष और चन्द्रशेखर ‘आजाद’ आदर्श थे, तब युवाओं ने 1974 की क्रांति लिखी थी। अब आदर्श बदल रहे हैं, अब राहुल और वरुण आदर्श हैं। आज चारों ओर युवा नेतृत्व की बात है। लेकिन युवा का अर्थ मात्र सोनिया का पुत्र होना ही तो नहीं होता, या कि सचिन पायलट, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अखिलेश यादव और जयंत का अर्थ युवा नहीं है।
युवा का अर्थ सलमान खान और आमिर खान भी नहीं होता। इन बिम्बों के पीछे दौड़ रही यह लाचार जमात युवा कहलाने के लायक नहीं रह गयी है।
कॉलेजों के आगे सीटी बजाने वाली इस पीढ़ी से क्रांति की उम्मीद नहीं की जा सकती है। सिगरेट के धुंए के बहाने अपनी जिम्मेदारियों से पलायन करने वाली युवाओं की इस भीड़ से फिर कोई 1942 और 1974 नहीं दुहराया जा सकेगा। रियलिटी शो में अपनी पहचान खोजते इन युवाओं से असल जिन्दगी के सवालों से जूझने की उम्मीद करना बेमानी है।
स्वामी जी ने कहा था, ‘‘सभी मरेंगे- साधु या असाधु, धनी या दरिद्र- सभी मरेंगे। चिर काल तक किसी का शरीर नहीं रहेगा। अतएव उठो, जागो और संपूर्ण रूप से निष्कपट हो जाओ। भारत में घोर कपट समा गया है। चाहिए चरित्र, चाहिए इस तरह की दृढ़ता और चरित्र का बल, जिससे मनुष्य आजीवन दृढ़व्रत बन सके।’’
इस शांत और लाचार युवा से कोई उम्मीद नहीं की जा सकती। स्वामी जी ने युवाओं को ललकारते हुए कहा था, ‘‘तुमने बहुत बहादुरी की है। शाबाश! हिचकने वाले पीछे रह जायेंगे और तुम कूद कर सबके आगे पहुँच जाओगे। जो अपना उद्धार करने में लगे हुए हैं, वे न तो अपना उद्धार ही कर सकेंगे और न दूसरों का। ऐसा शोर - गुल मचाओ की उसकी आवाज दुनिया के कोने कोने में फैल जाय। कुछ लोग ऐसे हैं, जो कि दूसरों की त्रुटियों को देखने के लिए तैयार बैठे हैं, किन्तु कार्य करने के समय उनका पता नहीं चलता है। जुट जाओ, अपनी शक्ति के अनुसार आगे बढ़ो। तूफान मचा दो तूफान!’’
रोटी और डिग्री के पीछे भागते युवाओं को पुकारते हुए स्वामी जी ने कहा था,‘‘मेरी दृढ धारणा है कि तुममें अन्धविश्वास नहीं है। तुममें वह शक्ति विद्यमान है, जो संसार को हिला सकती है, धीरे - धीरे और अन्य लोग भी आयेंगे। ‘साहसी’ शब्द और उससे अधिक ‘साहसी’ कर्मों की हमें आवश्यकता है। उठो! उठो! संसार दुःख से जल रहा है। क्या तुम सो सकते हो? हम बार-बार पुकारें, जब तक सोते हुए देवता न जाग उठें, जब तक अन्तर्यामी देव उस पुकार का उत्तर न दें। जीवन में और क्या है? इससे महान कर्म क्या है?
और तुम लोग क्या कर रहे हो?!! जीवन भर केवल बेकार बातें किया करते हो, व्यर्थ बकवाद करने वालों, तुम लोग क्या हो? जाकर लज्जा से मुँह छिपा लो। सठियाई बुध्दिवालों, तुम्हारी तो देश से बाहर निकलते ही जाति चली जायगी! अपनी खोपडी में वर्षों के अन्धविश्वास का निरन्तर वृध्दिगत कूड़ा-कर्कट भरे बैठे, सैकडों वर्षों से केवल आहार की छुआछूत के विवाद में ही अपनी सारी शक्ति नष्ट करनेवाले, युगों के सामाजिक अत्याचार से अपनी सारी मानवता का गला घोटने वाले, भला बताओ तो सही, तुम कौन हो? और तुम इस समय कर ही क्या रहे हो?! किताबें हाथ में लिए तुम केवल समुद्र के किनारे फिर रहे हो। तीस रुपये की मुंशी-गिरी के लिए अथवा बहुत हुआ, तो एक वकील बनने के लिए जी-जान से तड़प रहे हो -- यही तो भारतवर्ष के नवयुवकों की सबसे बडी महत्वाकांक्षा है। तिस पर इन विद्यार्थियों के भी झुण्ड के झुण्ड बच्चे पैदा हो जाते हैं, जो भूख से तड़पते हुए उन्हें घेरकर ‘रोटी दो, रोटी दो’ चिल्लाते रहते हैं। क्या समुद्र में इतना पानी भी न रहा कि तुम उसमें विश्वविद्यालय के डिप्लोमा, गाउन और पुस्तकों के समेत डूब मरो ? आओ, मनुष्य बनो! उन पाखण्डी पुरोहितों को, जो सदैव उन्नत्ति के मार्ग में बाधक होते हैं, ठोकरें मारकर निकाल दो, क्योंकि उनका सुधार कभी न होगा, उनके हृदय कभी विशाल न होंगे। उनकी उत्पत्ति तो सैकड़ों वर्षों के अन्धविश्वासों और अत्याचारों के फलस्वरूप हुई है। पहले पुरोहिती पाखंड को जड़-मूल से निकाल फेंको। आओ, मनुष्य बनो। कूपमंडूकता छोड़ो और बाहर दृष्टि डालो। देखो, अन्य देश किस तरह आगे बढ़ रहे हैं। क्या तुम्हें मनुष्य से प्रेम है? यदि ‘हाँ’ तो आओ, हम लोग उच्चता और उन्नति के मार्ग में प्रयत्नशील हों। पीछे मुडकर मत देखो; अत्यन्त निकट और प्रिय सम्बन्धी रोते हों, तो रोने दो, पीछे देखो ही मत। केवल आगे बढते जाओ। भारतमाता कम से कम एक हजार युवकों का बलिदान चाहती है -- मस्तिष्क - वाले युवकों का, पशुओं का नहीं।’’
आज देश के समक्ष असंख्य चीखते सवाल हैं। बेरोजगारी, भुखमरी, लाचारी, बेगारी, महंगाई।।। और भी ना जाने क्या-क्या? है कोई विकल्प किसी के पास? आज युवा, नरेन्द्र नाथ दत्त तो हैं, लेकिन ना उस नरेन्द्र में विवेकानंद बनने की युयुत्सा है और ना ही किसी परमहंस में आज देश-हित को निज-हित से ऊपर मानकर किसी नरेन्द्र को विवेकानंद बनने की दीक्षा देने का साहस ही शेष है।
लेकिन फिर भी उम्मीद है, ‘‘कोई नरेन्द्र फिर से विवेकानंद बनेगा।’’

-Amit Tiwari
News Editor


बेहाल है महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली जौनपुर


जौनपुर महर्षि यमदग्नि कीतपोस्थली शर्की सल्तनत कीराजधानी कहा जाने वाला प्राचीनकाल से शैक्षिक ऐतिहासिक दृष्टि सेसमृद्धिशाली शिराजे हिन्द जौनपुरआज भी अपने ऐतिहासिक एवंनक्काशीदार इमारतों के कारण केवल प्रदेश में बल्कि पूरे भारत वर्ष मेंअपना एक अलग वजूद रखता है।नगर में आज भी कई ऐसी महत्वपूर्णऐतिहासिक इमारतें है जो इस बात कापुख्ता सबूत प्रस्तुत करती है कि यहनगर आज से सैकड़ों वर्ष पूर्व एक पूर्णसुसज्जित नगर रहा होगा। शासन कीनजरे यदि इनायत हो और इसेपर्यटक स्थल घोषित कर दिया जायतो स्वर्ग होने के साथ बड़े पैमाने परदेशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षितकरने का माद्दा इस शहर में आज भीहै। नगर के ऐतिहासिक स्थलों मेंप्रमुख रूप से अटाला मस्जिद, शाहीकिला, शाही पुल, झंझरी मस्जिद, बड़ी मस्जिद, चार अंगुली मस्जिद, लाल दरवाजा, शीतला धाम चौकिया, महर्षि यमदग्नि तपोस्थल, जयचन्द्रके किले का भग्नावशेष आदि आजभी अपने ऐतिहासिक स्वरूप एवंसुन्दरता के साथ मौजूद है। इसकेअलावा चार दर्जन से अधिकऐतिहासिक इमारते यहां मौजूद हैजिनमें से कुछ रखरखाव के अभाव मेंजर्जर हो गये है।

देश की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में प्रचलित काशी जनपद के निकट होने के कारण दूसरे प्रांतों के अलावा कभी-कभी विदेशी पर्यटक यहांआकर ऐतिहासिक स्थलों का निरीक्षण कर यहां की संस्कृति की सराहना करने से नहीं चूकते लेकिन दूसरी तरफ शासन द्वारा पर्यटकों कीसुविधा के मद्देनजर किसी भी प्रकार की स्तरीय व्यवस्था किये जाने से उन्हे काफी परेशानी भी होती है।

हालांकि जनपद को पर्यटक स्थल के रूप में घोषित कराने का प्रयास कुछ राजनेताओं जिलाधिकारियों द्वारा किया गया लेकिन वे प्रयासफिलहाल नाकाफी ही साबित हुये। एक बार फिर मुलायम सरकार के कार्यकाल में जौनपुर शहर को पर्यटक स्थल घोषित किये जानेसम्बन्धी बातें प्रकाश में आयी थी, जिसमें केन्द्रीय पर्यटन विभाग द्वारा अटाला मस्जिद, राजा साहब का पोखरा, शाही पुल गोमती नदी केकिनारे घाटों के सौर्न्दीयकरण हेतु लगभग पांच करोड़ रुपया भी आया था लेकिन काम जो भी चल रहा है वो जरुरत से ज्यादा धीमा रहा औरवर्तमान में बंद हो गया। राजनेताओं द्वारा किये जाने वाले आधे-अधूरे प्रयास में यदि समय रहते पूरी रुचि दिखायी जाय तो संभवत: जौनपुरशहर को पर्यटक स्थल के रूप में घोषित किये जाने का स्वप्न साकार हो सकता है।

प्राचीन काल के जो भवन इस समय उत्तर भारत में विद्यमान है उनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण एवं प्राचीन अटाला मस्जिद शर्की शासनकाल केसुनहले इतिहास का आईना है। इसकी शानदार मिस्र के मंदिरों जैसी अत्यधिक भव्य मेहराबें तो देखने वालों के दिल को छू लेती है। इसकानिर्माण सन् 1408 . में इब्राहिम शाह शर्की ने कराया था। सौ फिट से अधिक ऊंची यह मस्जिद हिन्दू-मुस्लिम मिश्रित शैली द्वारा निर्मितकी गयी है जो विशिष्ट जौनपुरी निर्माण शैली का आदि प्रारूप और शर्कीकालीन वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है। शर्कीकाल के इस अप्रतिमउदाहरण को यदि जौनपुर में अवस्थित मस्जिदों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण खूबसूरत कहा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

इसी प्रकार जनपद की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में से एक नगर में आदि गंगा गोमती के उत्तरावर्ती क्षेत्र में शाहगंज मार्ग पर अवस्थित बड़ीमस्जिद जो जामा मस्जिद के नाम से भी जानी जाती है, वह शर्की कालीन प्रमुख उपलब्धि के रूप में शुमार की जाती है। जिसकी ऊंचाई दोसौ फिट से भी ज्यादा बताई जाती है। इस मस्जिद की बुनियाद इब्राहिम शाह के जमाने में सन् 1438 . में उन्हीं के बनाये नक्शे केमुताबिक डाली गयी थी जो इस समय कतिपय कारणों से पूर्ण नहीं हो सकी। बाधाओं के बावजूद विभिन्न कालों और विभिन्न चरणों मेंइसका निर्माण कार्य चलता रहा तथा हुसेन शाह के शासनकाल में यह पूर्ण रूप से सन् 1478 में बनकर तैयार हो गया। इन ऐतिहासिकइमारतों के अनुरक्षण के साथ ही साथ बदलते समय के अनुसार आधुनिक सुविधा मुहैया कराकर इन्हे आकर्षक पर्यटक स्थल के रूप मेंतब्दील किया जा सकता है।

नगर के बीचोबीच गोमती नदी के पूर्वी तट पर स्थित उत्थान-पतन का मूक गवाह 'शाही किला' आज भी पर्यटकों के लिए आकर्षण का प्रमुखकेन्द्र बिन्दु बना हुआ है। इस ऐतिहासिक किले का पुनर्निर्माण सन् 1362 . में फिरोजशाह तुगलक ने कराया। दिल्ली बंगाल के मध्यस्थित होने के कारण यह किला प्रशासन संचालन की दृष्टि से अत्यन्त महत्वपूर्ण था। इस शाही पड़ाव पर सैनिक आते-जाते समय रुकते थे।किले के मुख्य द्वार का निर्माण सन् 1567 . में सम्राट अकबर ने कराया था। राजभरों, तुगलक, शर्की, मुगलकाल अंग्रेजों के शासनकालके उत्थान पतन का मूक गवाह यह शाही किला वर्तमान में भारतीय पुरातत्व विभाग की देखरेख में है। इस किले के अन्दर की सुरंग कारहस्य वर्तमान समय में बन्द होने के बावजूद बरकरार है। शाही किले को देखने प्रतिवर्ष हजारों पर्यटक आते रहते है।

महाभारत काल में वर्णित महर्षि यमदग्नि की तपोस्थली जमैथा ग्राम जहां परशुराम ने धर्नुविद्या का प्रशिक्षण लिया था। गोमती नदी तट परस्थित वह स्थल आज भी क्षेत्रवासियों के आस्था का केन्द्र बिन्दु बना हुआ है। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण तो यह है कि उक्त स्थल के समुचितविकास को कौन कहे वहां तक आने-जाने की सुगम व्यवस्था आज तक नहीं की जा सकी है। झंझरी मस्जिद, चार अंगुली मस्जिद जैसीतमाम ऐतिहासिक अद्वितीय इमारतें है जो अतीत में अपना परचम फहराने में सफल रहीं परन्तु वर्तमान में इतिहास में रुचि रखने वालों केजिज्ञासा का कारण होते हुए भी शासन द्वारा उपेक्षित है।

मार्कण्डेय पुराण में उल्लिखित 'शीतले तु जगन्माता, शीतले तु जगत्पिता, शीतले तु जगद्धात्री-शीतलाय नमो नम:' से शीतला देवी कीऐतिहासिकता का पता चलता है। जो स्थानीय दूरदराज क्षेत्रों से प्रतिवर्ष आने वाले हजारों श्रद्घालु पर्यटकों के अटूट आस्था विश्वास काकेन्द्र बिन्दु बना हुआ है। नवरात्र में तो यहां की भीड़ गिनती का अनुमान ही नहीं लगाया जा सकता है।

इस पवित्र धार्मिक स्थल के सौन्दर्यीकरण हेतु समय-समय पर स्थानीय नागरिकों द्वारा केवल मांग की गयी बल्कि शासन द्वारा भीसमय-समय पर आश्वासनों का घूंट पिलाया गया। पिछले कुछ वर्ष पूर्व एक जनप्रतिनिधि की पहल पर शीतला धाम चौकियां के समग्रविकास हेतु एक प्रोजेक्ट बनाकर शासन द्वारा प्रस्ताव स्वीकृत कराने का प्रयास प्रकाश में आया था लेकिन पर्यटन विभाग की फाइलों में कैदउक्त महत्वाकांक्षी योजना जाने किन कारणों के चलते अमली जामा नहीं पहन सकी। इस स्थल के सौन्दर्यीकरण के लिए पर्यटन विभागद्वारा यदि अपेक्षित प्रयास किया जाय तो निश्चित ही बड़ी संख्या में यहां आने वाले श्रद्धालुओं पर्यटकों को जहां सुविधा होगी वहीं उनकीसंख्या में भी काफी बढ़ोत्तरी तय है।

शिराज--हिन्द जौनपुर की आन-बान-शान में चार चांद लगाने वाला मध्यकालीन अभियंत्रण कला का उत्कृष्ट नमूना 'शाही पुल' पिछली कईसदियों से स्थानीय दूरदराज क्षेत्रों के पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। भारत वर्ष के ऐतिहासिक निर्माण कार्यो में अपनाअलग रुतबा रखने वाला यह पुल अपने आप में अद्वितीय है। वही खुद पयर्टकों का मानना है कि दुनिया में कोई दूसरा सड़क के समानान्तरऐसा पुल देखने को नहीं मिलेगा।

शहर को उत्तरी दक्षिणी दो भागों में बांटने वाले इस पुल का निर्माण मध्यकाल में मुगल सम्राट अकबर के आदेशानुसार मुनइम खानखानाने सन् 1564 . में आरम्भ कराया था जो 4 वर्ष बाद सन् 1568 . में बनकर तैयार हुआ। सम्पूर्ण शाही पुल 654 फिट लम्बा तथा 26 फिटचौड़ा है, जिसमें 15 मेहराबें है, जिनके संधिस्थल पर गुमटियां निर्मित है। बारावफात, दुर्गापूजा दशहरा आदि अवसरों पर सजी-धजीगुमटियों वाले इस सम्पूर्ण शाही पुल की अनुपम छटा देखते ही बनती है।

इस ऐतिहासिक पुल में वैज्ञानिक कला का समावेश किया गया है। स्नानागृह से आसन्न दूसरे ताखे के वृत्त पर दो मछलियां बनी हुई है। यदिइन मछलियों को दाहिने से अवलोकन किया जाय तो बायीं ओर की मछली सेहरेदार कुछ सफेदी लिये हुए दृष्टिगोचर होती है किन्तु दाहिनेतरफ की बिल्कुल सपाट और हलकी गुलाबी रंग की दिखाई पड़ती है। यदि इन मछलियों को बायीं ओर से देखा जाय तो दाहिने ओर कीमछली सेहरेदार तथा बाई ओर की सपाट दिखाई पड़ती है। इस पुल की महत्वपूर्ण वैज्ञानिक कला की यह विशेषता अत्यन्त दुर्लभ है।

साभार :- जागरण

संकलन :- अविनाश कुमार